Swami Vivekananda Biography in Hindi

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 स्वामी विवेकानंद की जीवनी 2023Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी 19वीं शताब्दी में जन्में एक महान एक महान अभिव्यक्ति थे जिन्होंने दुनिया को भारत की महानता का परिचय दिया और जिन्होंने अपने ज्ञान से संपूर्ण विश्व को प्रभावित किया एक युवा क्रांतिकारी के रूप में स्वामी विवेकानंद जी ने कई महान कार्य किए तथा उन्होंने संपूर्ण विश्व के युवाओं के मन में एक नई विचारधारा पैदा की स्वामी विवेकानंद युवाओं के लिए आज भी एक प्रेरणा का स्रोत है

 


इस आर्टिकल के माध्यम हम आपको स्वामी की जीवनी से अवगत कराने वाले हैं इस आर्टिकल में हमने स्वामी विवेकानंद की संपूर्ण जीवनी ( Swami Vivekananda Biography in Hindi ) का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है साथ ही इसमें स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी सभी प्रमुख घटनाओं का विस्तार से वर्णन किया है

 

जन्म  12 जनवरी 1869 ( कोलकाता में )

मूल नाम      नरेंद्रनाथ दत्त

पिता  विश्वनाथ दत्त

माता  भुवनेश्वरी देवी

भाई   भूपेंद्र नाथ दत्त, महेंद्रनाथ दत्त

बहन  स्वर्णामोये देवी

गुरु    रामकृष्ण परमहंस

कार्य  आध्यात्मिक शिक्षा का प्रचार एवं रामकृष्ण मिशन की स्थापना

मृत्यु   4 जुलाई 1902 (बेलूर मठ पश्चिम बंगाल)

स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण जीवन परिचय 2023 ( Full Biography of Swami Vivekananda in Hindi )

स्वामी विवेकानंद का जन्म :-

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1869 को कोलकाता में एक कुलीन उदार परिवार में हुआ स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कोलकाता हाई कोर्ट में प्रसिद्ध वकील थे उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीस्वामी विवेकानंद के कुल 9 भाई-बहन थेस्वामी विवेकानंद के दादा दुर्गा दत्त फारसी और संस्कृत के विख्यात विद्वान थे जिन्होंने 25 वर्ष की उम्र में ही परिवार और घर त्याग कर सन्यास ले लिया था

 

 

स्वामी विवेकानंद का बचपन :-

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के स्वामी थे साथ ही वे काफी नटखट भी थे बचपन में वे अपने सभी दोस्तों के साथ काफी शरारत किया करते थे

 

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही धार्मिक और अध्यात्मिक वातावरण में पले-बड़े उनके घर में प्रत्येक दिन नियमपूर्वक पूजा-पाठ होता था स्वामी विवेकानंद की माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की थी जिसके चलते उन्हें पुराण, रामायण, महाभारत आदि धार्मिक कथा सुनते थे जिसके चलते कथावाचक प्राय: इनके घर आते रहते थे

 

स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण बचपन धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण में गुजरा जिसके कारण उनके मन पर धर्म एवं अध्यात्म का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा धीरे-धीरे यहां पर बावरा होता चला गया अपने माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण स्वामी विवेकानंद के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और सत्य का ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हो गईईश्वर को जानने की लालसा ने धीरे धीरे उनके मन को अध्यात्म की और ले गया और वे संन्यासी हो गये

 

स्वामी विवेकानंद की प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बड़े तीव्र थे उन्होंने 8 वर्ष की आयु में सन् 1871 मेंईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन संस्थानमें दाखिला लिया इसके प्रश्चात उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया1879 में, स्वामी विवेकानंद ने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज की इंट्रेंस परीक्षा पास की इसके साथ ही वे कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से इंट्रेंस परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले पहले विद्यार्थी बने

 

उन्होंने पश्चिमी तट जीवन और यूरोपीय इतिहास की पढ़ाई जनरल इंस्टिट्यूट असेंबली से की 1881 में उन्होंने ललित कला की परीक्षा पास की और 1884 में उन्होंने स्नातक की डिग्री पूरी की नरेंद्रनाथ दत्त ने डेविड ह्यूम इमैनुएल कैंट और चार्ल्स डार्विन जैसे महान वैज्ञानिकों का अध्ययन कर रखा था इसके साथ ही स्वामी विवेकानंद हरबर्ट स्पेंसर के विकास सिद्धांत से भी काफी प्रभावित थे जिसके कारण उन्होंने हरबर्ट स्पेंसर की किताब को बंगाली में परिभाषित किया

 

स्वामी विवेकानंद जी की अध्यात्मिक शिक्षा

स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए पहले ब्रह्म समाज में प्रवेश किया किंतु वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ क्योंकि स्वामी विवेकानंद वेदांत योग को पश्चिम संस्कृत में प्रचलित करने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते थे

 

रामकृष्ण परमहंस की तारीफ सुनकर स्वामी विवेकानंद उनसे तर्क करने के उद्देश्य से उनके पास गए किंतु रामकृष्ण परमहंस के विचारों से प्रभावित होकर स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु बना लिया परमहंस जी ने उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त किया रामकृष्ण परमहंस की ही कृपा से स्वामी विवेकानंद जी को आत्म साक्षात्कार हुआ विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस के सबसे प्रिय शिष्य थे25 वर्ष की आयु में ही स्वामी विवेकानंद ने गेरुआ वस्त्र धारण कर संयास ले लिया और विश्व भ्रमण पर निकल पड़े

 

स्वामी विवेकानंद के द्वारा शिकागो में दिया गया प्रसिद्ध भाषण

सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म परिषद का आयोजन किया गया जहां उन्होंने इतिहास का सबसे चर्चित भाषण दिया इस धर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद भारत के प्रतिनिधि बनकर गए लेकिन उस समय यूरोप में भारतीयों को हीन दृष्टि से देखा जाता था लेकिन कहते हैं ना कि उगते सूरज को कौन रोक सकता है शिकागो में लोगों के विरोध के बावजूद एक प्रोफेसर के प्रयास से स्वामी जी को बोलने का अवसर प्राप्त हुआ स्वामी जी ने अंग्रेजी मेंMy all American Brother and Sister” कहकर उस सभा को संबोधित किया जिसके बाद उस भाषण सभा में उपस्थित विश्व के 6000 से भी अधिक विद्वानो ने करीब 2 मिनट तक लगातार तालियां बजायी

 

इस भाषण में उन्होंने सर्वप्रथम कहा कि मेरे सभी अमेरिकी भाइयों और बहनों आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैंसंसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मे आपको धन्यवाद देता हूँ इसके साथ ही धर्मों की माता सभी भारतीय सम्प्रदायों एवं सभी मतों के कोटिकोटि हिन्दुओं की ओर से इस सभा में बैठे हुए सभी आदरणीय को मे धन्यवाद देता हूँ

 

 

में इस मंच पर से बोलनेवाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया हैं कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं

 

स्वामी विवेकानंद ने कहा कि में एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संपूर्ण संसार को सहिष्णुता और सार्वभौम स्वीकृति दोनों की ही शिक्षा दी हैंहम भारतीय सभी धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, अपितु समस्त धर्मों को सच्चा मानकर उन्हें स्वीकार भी करते हैं

 

मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान हैं, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और समू और शरणार्थियों को आश्रय दिया हैंमुझे आपको यह बताते हुए गर्व हो रहा हैं कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया थाऐसे धर्म का अनुयायी होने में में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान जरथुष्ट्र जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा हैं

 

में आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति में बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं :-

 

रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।

 

अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न संप्रदायों और विचार के लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं

 

 

यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक हैं, स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत् के प्रति उसकी घोषणा हैं

 

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ।।

 

अर्थात भगवान कहते हैं कि जो कोई भी मेरी ओर किसी भी प्रकार से आता हैं में उसे प्राप्त होता हुं भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में सभी मेरी ही ओर आते हैं

 

इस धर्म महासभा सम्मेलन में उन्होंने लगातार 120 मिनट तक भाषण दिया उन्होंने कहा कि जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु को उसकी आत्मा से पृथक रखकर प्रेम करते हैं तो फलत हमें कष्ट भोगना पड़ता है अतः हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम व्यक्ति को आत्मा से जोड़ कर देखें या उसे आत्म स्वरूप मानकर चलें तो हम हर स्थिति में कष्ट रोग और तटस्थ से निर्विकार रहेंगे

 

भाषण के अगले ही दिन सभी विदेशी अखबारों में यह घोषणा हुई की विवेकानंद का भाषण इतिहास का सबसे सफल भाषण था जिसके बाद इस भाषण को इतिहास का सबसे चर्चित भाषण माना जाने लगा इसके बाद संपूर्ण विश्व स्वामी विवेकानंद और भारतीय संस्कृति को पूजने लगा

 

इसके बाद 2 वर्ष तक स्वामी विवेकानंद अमेरिका के विभिन्न शहरों में भारतीय अध्यात्म का प्रचार प्रसार करते रहे जिसके प्रश्चात वे इंग्लैंड गए वहां की मार्गरेट नोबद उनके अनुयायी बने जो बाद मेंसिस्टर निवेदिताके नाम से प्रसिद्ध हुई

 

वर्ष 1897 को वे स्वदेश लौट कर आए स्वामी विवेकानंद ने 1897 मेंरामकृष्ण मिशनकी स्थापना की और धार्मिक आडंबरो, रूढ़ियों और पुरोहितवाद से लोगों को बचने की सलाह दीस्वमी विवेकानंद ने अपने विचारों की क्रांति से लोगों और समाज को जागृत करने का कार्य किया

 

स्वामी विवेकानंद के बारे में महान भारतीय कवि और लेखकरविंद्र नाथ टैगोरकहते हैं कि यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए उनमें आप सब कुछ सकारात्मक पाएंगे नकारात्मक कुछ भी नहीं

 

स्वामी विवेकानन्द का शिक्षा-दर्शन

स्वामी विवेकानन्द उस समय मैकाले द्वारा प्रतिपादित प्रचलित अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ/विरोधी थेक्योंकि स्वामी विवेकानंद का मानना था कि इस अंग्रेजी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य केवल सरकारी नौकर तथा बाबुओं की संख्या बढ़ाना है इसलिए विवेकानंद जी ऐसी शिक्षा व्यवस्था का विकास करना चाहते थे जिससे प्रत्येक बालक का सर्वांगीण विकास हो सके

 

स्वामी विवेकानन्द ने इस शिक्षा व्यवस्था कोनिषेधात्मक शिक्षाकी संज्ञा दिया और कहा कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, चरित्र का निर्माण नहीं करती,  समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती ऐसी शिक्षा का कोई लाभ नहीं

 

 

स्वामी जी सैद्धान्तिक शिक्षा के पक्षधर नहीं थे वह मानव विकास के लिए व्यावहारिक शिक्षा को उपयोगी मानते थेस्वामी विवेकानंद जी कहते है कि व्यक्ति की शिक्षा ही उसके भविष्य को तक्ष करती है इसलिए उनका कहना था कि शिक्षा में ऐसे तत्वों का होना अनिवार्य है जो मानव के सम्पूर्ण विकास के लिए महत्वपूर्ण हो

 

स्वामी विवेकानंद का शिक्षा दर्शन व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर केंद्रित हैं, कि केवल किताबी ज्ञान पर

 

शिक्षा के क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद जी के विचार

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) जी अंग्रेजी शिक्षा के प्रखर विरोधी थे कि क्योंकि उनका मानना था कि अंग्रेजी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था है जिससे व्यक्ति को आत्मज्ञान की प्राप्ति कभी भी नहीं हो सकतीस्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान प्राप्त करना नहीं है बल्कि शिक्षा वह है जो व्यक्ति के बुद्धिमत्ता के साथ-साथ उसके चरित्र का भी निर्माण करें

 

स्वामी जी एक पत्र में लिखते हैंशिक्षा क्या है? क्या वह पुस्तक-विद्या है ? नहीं! क्या वह नाना प्रकार का ज्ञान है ? नहीं, यह भी नहीं

 

वह कहते है कि जिस संयम लगन के द्वारा  विकास और इच्छाशक्ति के प्रवाह को वश में लाया जाता है वह शिक्षा कहलाती हैशिक्षा का उपयोग चरित्र-निर्माण एवं जीवन संघर्षों से लड़ने के लिए किया जाना चाहिए

 

स्वामी जी का कहना था किशिक्षा का मतलब यह नहीं है कि तुम्हारे दिमाग़ में ऐसी बहुत-सी बातें इस तरह ठूँस दी जायँ, जो आपस में लड़ने लगें और तुम्हारा दिमाग़ उन्हें जीवन भर हज़म कर सकेजिस शिक्षा से हम अपना जीवन तथा चरित्र का निर्माण कर सकें और विचारों का सामंजस्य कर सकें, वही वास्तविकता में शिक्षा कहलाने योग्य हैउनका कहना था कि जो व्यक्ति पाँच ही भावों को हज़म कर सही रूप में अपने जीवन और चरित्र को गठित कर सकता हो उस व्यक्ति की शिक्षा, उस आदमी की अपेक्षा बहुत अधिक है, जिसने की पूरी की पूरी पुस्तकालय को ही कण्ठस्थ कर लिया है

 

स्वामी विवेकानंद का मत था कि उपयुक्त शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होना चरित्र की उन्नति संभव है

 

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा के आधारभूत सिद्धांत

स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा के कुछ आधारभूत सिद्धांत निम्नलिखित हैं

 

बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा प्राप्त है

एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था हो जिसमें बच्चों का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके

पाठ्यक्रम में पारलौकिक एवं लौकिक दोनों प्रकार के विषयों का स्थान हो

देश की आर्थिक विकास के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था हो

धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा दिया जाए

शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो और बालक आत्मनिर्भर बने

शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अत्यन्त गहरा एवं निकट होना चाहिए

शिक्षा ऐसी हो जो सीखने वाले को जीवन संघर्ष से लड़ने की शक्ति दे

सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये

स्वामी विवेकानंद के राजनीतिक विचार

स्वामी विवेकानंद एक राजनीतिक विचारक नहीं थे लेकिन उन्होंने अपने भाषणो और रचनाओं के माध्यम से जो विचार व्यक्त किए उसके आधार पर कहा जा सकता है कि वे भारतीय राष्ट्रवाद के एक धार्मिक नियमों का निर्माण करना चाहते थे

 

राष्ट्रवाद के प्रमुख सिद्धांत :- स्वामी विवेकानंद कहते थे कि जिस प्रकार संगीत के एक प्रमुख स्वर होते हैं उसी प्रकार प्रत्येक राष्ट्र के जीवन में एक प्रधान तत्व हुआ करता है इसलिए उन्होंने राष्ट्रवाद के एक धार्मिक सिद्धांत की नींव का निर्माण करने के लिए कार्य किया

 

स्वामी विवेकानंद के प्रेरणादायक विचार

स्वामी विवेकानंद एक महान अभिव्यक्ति थे उनके विचारों में एक अलग ही जोश थाउनके विचारों से सभी के मन में एक अलग ही प्रकार का जोश भर जाता है वे कहते हैं कि उठो, जागो और तब तक मत रूको जब तक लक्ष्य प्राप्त हो जाए स्वामी विवेकानंद सभी युवाओं के लिए आज भी एक प्रेरणा का स्रोत है आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करके स्वामी विवेकानंद जी की कुछ अनमोल और प्रेरणादायक विचारों को पढ़ सकते हैं

 

 

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु के क्या कारण थे ?

चिकित्सा विज्ञान के अनुसार स्वामी विवेकानंद कई रोगों से ग्रसित थे और हृदय गति रुक जाने के कारण उनकी मृत्यु हुई लेकिन स्वामी विवेकानंद के शिष्यों का कहना था कि स्वामी विवेकानंद ने स्वेच्छा से अपनी समाधि ले लिया स्वामी जी के शिशु के अनुसार उन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त थाकहां जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने अपनी मृत्यु से पूर्व ही अपनी मृत्यु के समय को निर्धारित कर दिया था उन्होंने कहा था कि 40 वर्ष की आयु से पूर्व ही मेरी आत्मा इस नश्वर शरीर को छोड़ देगी

 

पूरे विश्वभर में आज भी स्वामी विवेकानंद का नामबड़े सम्मान के साथ लिया जाता है वे आज भी सभी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैस्वामी विवेकानंद की जीवनी को चिन्हित करने के लिए भारत में प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है

 

स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित कुछ रचनाएं

स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित बहुत सारी रचनाएं हैं लेकिन अधिकतर विद्वानों का ऐसा मानना है कि स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित रचनाएं उनके शिष्यों द्वारा ही लिखी गई है स्वामी विवेकानंद के जीवन पर आधारित कुछ रचनाएं स्वामी विवेकानंद जी के जीवित रहते ही लिखी गई जबकि कुछ रचनाएं उनके मरणोपरांत लिखी गई

 

स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित पुस्तकें एवं रचनाएं जो उनके जीवित रहते लिखी गई

 

संगीत कल्पतरु – ( प्रकाशित वर्ष1887 )

कर्म योग – ( प्रकाशित वर्ष1896 )

Lectures from Colombo to Almora – ( प्रकाशन वर्ष1897 )

ज्ञान योग – ( प्रकाशित वर्ष 1899 )

राज योग – ( प्रकाशित वर्ष 1899 )

Seeing beyond the Circle – ( प्रकाशित वर्ष2005 )

स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित कुछ पुस्तकें एवं रचनाएं जो उनके मरणोपरांत लिखी गई

 

भक्ति योग

Inspired Talks – ( प्रकाशन वर्ष1909)

The East and the West – ( प्रकाशन वर्ष1909 )

Para Bhakti or Supreme Devotion

Practical Vedanta

Speeches and writings of Swami Vivekananda : A Comprehensive Collection

स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से जुड़ी कुछ महत्त्वपूर्ण तिथियां ( Swami Vivekananda Biography in Hindi )

12 जनवरी 1863

कोलकाता  में जन्म

1879

कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश

1880

जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश

नवम्बर 1881

रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट

1882 से 1886

रामकृष्ण परमहंस से शिक्षा प्राप्त किया

1884

स्नातक परीक्षा में उत्तीर्ण

16 अगस्त 1886

रामकृष्ण परमहंस का निधन

1886

स्वामी विवेकानंद द्वारा वराहनगर मठ की स्थापना

जनवरी 1887

वड़ानगर मठ में औपचारिक सन्यास

1890 से 1893

संपूर्ण भारत का भ्रमण

13 फ़रवरी 1893

सिकंदराबाद में प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान

31 मई 1893

मुम्बई से अमरीका के लिए रवाना हुए

30 जुलाई 1893

शिकागो में आगमन

अगस्त 1893

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो॰ जॉन राइट से भेंट

11 सितम्बर 1893

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो॰ जॉन राइट से भेंट

11 सितम्बर 1893

शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में प्रथम भाषण

27 सितम्बर 1893

शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में अन्तिम व्याख्यान

16 मई 1894

हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण

नवंबर 1894

उनके द्वारा न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना

जनवरी 1895

न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरम्भ

अक्टूबर 1895

लन्दन में व्याख्यान

मईजुलाई 1896

हार्वर्ड विश्वविद्यालय में भाषण

30 दिसम्बर 1896

नेपाल से भारत की ओर रवाना

15 जनवरी 1897

श्रीलंका के कोलंबो में आगमन

जनवरी 1897

रामनाथपुरम् (रामेश्वरम) में भाषण

1 मई 1897

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

मई से दिसम्बर 1897

उत्तर भारत की यात्रा

जनवरी 1898

कोलकाता वापसी

19 मार्च 1899

मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना

20 जून 1899

पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा

31 जुलाई 1899

पुनः न्यूयॉर्क आगमन

22 फ़रवरी 1900

सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की स्थापना

जून 1900

न्यूयॉर्क में अन्तिम कक्षा ली

26 जुलाई 1900

यूरोप के लिए रवाना

24 अक्टूबर 1900

वियना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा की

26 नवम्बर 1900

पुनः भारत के लिए रवाना

9 दिसम्बर 1900

बेलूर मठ में आगमन

मार्च से मई 1901

पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा

जनवरी से फरवरी 1902

बोध गया और वाराणसी की यात्रा

मार्च 1902

पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में वापसी

4 जुलाई 1902

बेलूर मठ में महासमाधि

 

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