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धौलावीरा : सभ्यता और मनुष्य



धौलावीरा एक ऐसा नगर जहां आज कोई नहीं रहता ! लेकिन हजारों साल पहले यह दुनिया के सबसे विकसित नगरों में से एक था और इस बात की जानकारी भी हमें अभी भारत के आजाद होने तक ज्ञात ही न थी ।


इसकी खोज हुई 1967 में जब पुरातत्वविदों ने यहां खनन कार्य किया और बड़े विशाल नगर के अवशेष उन्हे जमीन के नीचे दबे मिले तब भारत का एक प्राचीन नगर दुनियां के सामने आया । हालांकि धौलवीरा सिंधु या हड़प्पा सभ्यता का ही एक नगर है लेकिन हड्डपा के प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो, हड़प्पा जो प्रमुख नगर है भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान में चले गए । भारत में बचे हड़प्पा कालीन नगरों में रोपड़(पंजाब) , कालीबंगा(राजस्थान) , राखीगढ़ी (हरियाणा) एवं लोथल और धौलावीरा ( गुजरात ) जिनमें से आज धौलावीरा की चर्चा इसलिए की जा रही हैं क्योंकि यूनेस्को ने धौलावीरा को विश्व विरासत स्थलों की सूची में स्थान दिया है ।


इससे पहले भी सिंधु सभ्यता के स्थल मोहनजोदड़ो को विश्व विरासत स्थल में शामिल किया गया है पर वह वर्तमान में पाकिस्तान में है । ऐसे में हड़प्पा कालीन भारत का पहला स्थल धौलावीरा है जो विश्व विरासत में शामिल किया है और इसके साथ ही यह भारत का 40 वाँ यूनेस्को स्थल बन गया है ।
इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखने वालो के लिए यह गर्व का विषय है ।

हड़प्पा सभ्यता के बारे में 1920 से पहले तक कुछ खास जानकारी नहीं थी और हम भारतीय भी अपने इतिहास को वैदिक काल तक ही सीमित मानते थे । लेकिन 1920 में हुई हड़प्पा और 1921 में मोहनजोदड़ो की खोज ने भारत की प्राचीन विकसित वैभवशाली सभ्यता के प्रमाण् प्रस्तुत किए और पूरे विश्व को आश्चर्य में डाल दिया क्योंकि हप्पड़ा सभ्यता तत्कालीन सभी सभ्यताओं में सर्वाधिक विकसित थी हड़प्पा के स्थल नागरीकृत थे और नगर नियोजन उस समय का श्रेष्ठ नगर व्यवस्था के प्रमाण था हड़प्पा वासियों के नगर ग्रिड पद्धति (#) यानी की उसकी गालियां एक दूसरे को समकोण पर कटती है ।

हड़प्पा वासियों ने नालियों का विकास किया था और आज के सीवेज सिस्टम की तरह वे भी मैन होल (चैंबर) बनाते थे साथ ही साथ लकड़ी के पाइप का उपयोग करते थे । नगर में जल निकास तंत्र दुनिया के अन्य तत्कालीन शहरों में सबसे बेहतरीन था वे लोग पक्की ईंटो का उपयोग कर घर बनाते थे और और उनके घरों में रसोई घर नहाने के लिए बाथरूम और अलग - अलग कमरे मौजूद होते थे ।

कई स्थानों से मिली मुद्राएं बताती है की सिंधु सभ्यता में व्यापार वाणिज्य भी उन्नत स्तिथि में था और यह व्यापार सभ्यता के आंतरिक स्थानों के अलावा विदेशों जैसे सोमारिया और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के साथ भी होता था । यह सभी चीजें प्रमाणित करती है कि हम आज से 5 हजार साल  दुनिया के सबसे उच्च किस्म के निर्माणकर्ता और विकसित लोग थे ।

लेकिन एक इतनी विकसित सभ्यता ऐसे विलुप्त हुई थी की इसके अवशेष मात्र तक पता किसी को सदियों तक न चला था , और अब चला भी तो भी हम अभी तक वहां मिली वस्तुओं के आधार पर ही अनुमान लगाते हैं कि वहां धर्म कैसा होगा , समाज होगा तो कैसा होगा , लोग कैसे होगें आदि आदि ।

वैसे आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सिंधु सभ्यता वाले लिखना भी जानते थे। जबकि उनके बाद की वैदिक संस्कृति के लोग लेखन कला से परिचित नहीं थे और वे अपने साहित्य को ' श्रुति साहित्य ' यानी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी सुना-सुना कर आगे बढ़ते थे। लेकिन हम यानी मनुष्य को जो मंगल ग्रह पर जाने में तो खुद को सक्षम समझता है पर अभी तक सिंधु की लिपि को पढ़ने में सफल नहीं हुआ है।

खैर एक दिन लिपि भी पढ़ ली जाएगी और हम जान जायेंगे कि सभ्यता कैसी थी ? क्या - क्या था ? उसमें ।

पर इतिहास से हमें सीखना चाहिए कि  हमसे पहले भी दुनिया में अनेक लोग आए हैं और चले गए हैं उन्होंने बेहद नायब नमूने बनाए जिनमें अनेकों आज भी अनसुलझे हैं लेकिन उन लोगों का बजूद तक नहीं रहा है हम इंसान कितनी भी तरक्की कर ले हम बहुत सीमित ही है कोई परफेक्ट नहीं हुआ न कोई हमेशा के लिए हुआ है । बेहतर है अच्छा जीवन जिए और अपने लिए जिए ... ।




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